अमित शाह ने जब प्रेस कांफ्रेंस में रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान किया उससे पहले भाजपा के बाहर सिर्फ चार लोगों को रामनाथ कोविंद के उम्मीदवार बनने की खबर थी. अमित शाह ने सबसे पहले आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत से बात की और उनसे सलाह करने के बाद ही रामनाथ कोविंद के नाम का फैसला हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाने की खबर दी. इसके अलावा खुद रामनाथ कोविंद को भी उम्मीदवार बनने पर प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष ने बधाई दी.

कांग्रेस रामनाथ कोविंद का नाम सुनने के बाद अपनी रणनीति पर दोबारा विचार कर रही है. खबर है कि कांग्रेस एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेगी. कांग्रेस की तरफ से भी एक दलित चेहरे को उम्मीदवार बनाने की तैयारी है. संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के तौर पर मीरा कुमार का नाम सबसे ऊपर है. वे महिला हैं, दलित हैं और बिहार की हैं.

लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने ऐसा प्लान बनाया है जिससे कांग्रेस का उम्मीदवार संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार भी बनेगा यह मुश्किल लगता है. रामनाथ कोविंद ऐसे पहले राष्ट्रपति होंने जिनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ. इससे पहले ज़ाकिर हुसैन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था. इसलिए भाजपा को उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी उनका समर्थन करेगी. बहुजन समाजवादी पार्टी की मायावती भी एक दलित राष्ट्रपति उम्मीदवार का विरोध नहीं कर पाएंगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल रामनाथ कोविंद के बीच रिश्ते सहज हैं, इसलिए वे भी बिहार के राज्यपाल के राष्ट्रपति भवन जाने का रास्ता रोकना मुनासिब नहीं समझेंगे. उम्मीदवार बनने के बाद रामनाथ कोविंद ने सबसे पहले नीतीश कुमार को ही चाय पर बुलाया.

कांग्रेस, सीपीएम, डीएमके और ममता बनर्जी की पार्टी अब भी अलग उम्मीदवार उतारने पर अड़ी है. इसलिए यह करीब-करीब तय है कि रामनाथ कोविंद आम सहमति से राष्ट्रपति नहीं चुने जाएंगे. कांग्रेस के नेता आपसी बातचीत में कहते हैं कि‘हम जानते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार की हार होगी, लेकिन फिर भी हम चुनाव लड़ेंगे. ये ठीक वैसा ही है जैसे कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन भाजपा ने पीए संगमा को समर्थन कर दिया.’

रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति भवन भेजने के पीछे वोट का हिसाब भी है. अब उत्तर प्रदेश से चुने सांसद देश के प्रधानमंत्री होंगे और उत्तर प्रदेश में जन्मे दलित नेता देश के राष्ट्रपति होंगे. भाजपा यही संदेश मतदाताओं को देना चाहती है. मायावती की पार्टी के हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं - लोकसभा में उनका दल शून्य पर है और विधानसभा में बीस से भी नीचे. अमित शाह का प्लान है कि अगले चुनाव तक दलित वोटर मायावती को छोड़कर भाजपा का दामन थाम ले. इसलिए रामनाथ कोविंद का नाम सोचा गया.

आरएसएस की बस एक ही शर्त थी कि अगला राष्ट्रपति संघ का स्वयंसेवक ज़रूर रहा हो. रामनाथ कोविंद आरएसएस के इस पैमाने पर खरे उतरते हैं. वे जब अशोक रोड पर भाजपा के दलित मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर बैठते थे तब भी झंडेवालान में संघ मुख्यालय के करीब माने जाते थे. अमित शाह ने राष्ट्रपति चुनाव के अंकगणित का पूरा हिसाब लगाकर ही उनका नाम आगे किया.

जब यूपीए के समय प्रतिभा पाटिल की एंट्री हुई थी, तब सोनिया गांधी ने महिला राष्ट्रपति का कार्ड खेला था. इस बार नरेंद्र मोदी ने दलित कार्ड खेला है.