ईद पर बना ये एड देखकर 'हिंदू-मुस्लिम' करने वालों को शर्म आने लगेगी

ईद. मुस्लिमों का वो त्योहार जिसमें लोग गले मिलते हैं. खुशियां बांटी जाती हैं. गिले शिकवे एक दूसरे के गले लगकर भुला दिए जाते हैं. मगर ऐसा आज के दौर में कम ही दिखता है. नफरतें इतनी बढ़ गई हैं कि गैर मजहबी तो छोड़िए भाई भी भाई का रास्ता काटके निकल जाता है कि कहीं गले न मिलना पड़ जाए. माहौल इतना ख़राब हो चला है कि ‘हिंदू-मुस्लिम’ की बातें हो रही हैं.

कितना ‘हिंदू-मुस्लिम’ हो रहा है इस बात का अंदाज़ा उस घटना से लगा सकते हैं जब चार लड़के दिल्ली से ईद की खरीदारी करके अपने घर (हरियाणा) बल्लभगढ़ के खंदावली लौट रहे थे. लेकिन उनपर मुस्लिम घृणा के चलते हमला हुआ, एक की मौत हो गई. इस मज़हबी घृणा के चलते देश का सुकून गर्त में जा रहा है. ये घृणा महज़ एकतरफा नहीं है बल्कि दोनों तरफ पल रही है. घृणा से समाज के सुकून को बचाने का मैसेज देता ईद पर आया ये कमर्शियल एड ऐसे ही है जैसे उमस भरे मौसम में बादल कुछ बूंदे धरती पर छिटक दे.

एड बनाया है घड़ी डिटर्जेंट ने. एड में दिखाया गया है कि बीवी शौहर से पूछती है, इस ईद पर घर कौन-कौन आ रहा है? शौहर जवाब देता है वही अपना गैंग. इसपर बीवी पूछती है कि उनके अलावा और कौन? शौहर कहता है, बहुत टाइम हो गया, अब वो लोग क्या सोचते होंगे. तब बीवी उसको सलाह देती है कि एक छोटा सा ही तो वर्ड है बोल डालो.

बीवी की बात सुनकर शौहर फ़ोन लगाता है और सबको सॉरी बोलने लगता है. दोस्त के साथ बिताए पुराने पल याद करता है. और उसे घर बुलाता है. इस एड में असली रंग तब आता है जब उसका एक हिंदू दोस्त करन उससे सॉरी बोलने चला उसके घर चला आता है.

करन कहता है, ‘सुना है दुनियाभर में सॉरियां बांट रहे हो तुम. हम भी आ गए.’

करन का ये डायलॉग सुनते ही दिमाग झन्नाटे के साथ अपने इर्द गिर्द आ जाता है कि ऐसा हकीकत में क्यों नहीं हो जाता. क्यों आपस में लड़े मरे जा रहे हैं. और किसलिए मार दे रहे हैं. एक दूसरे को. क्या हम ये पहल नहीं कर सकते? क्या वो मैल नहीं धुल सकते, जो राजनीतिक आंधियों ने धूल उड़ाकर हमारे दिलों दिमाग में जमा दिए हैं. ऐसी कौन सी मजबूरी है जो ‘घड़ी डिटर्जेंट’ की इस अपील को हम अपनी जिंदगी में नहीं उतार सकते, इस ईद सारे मैल धो डालो, एक सॉरी ही तो है बोल डालो.’

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