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Swami Kalyandev
Social Worker
Padma Sri Award - 1982
Vishwakarma

About

निष्काम, कर्मयोगी, तप, त्याग और सेवा की साक्षात मूर्ति ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव महराज का जन्म वर्ष 1876 में जिला बागपत के गांव कोताना में उनकी ननिहाल में हुआ थ । उनका पालन पोषण मुजफरनगर के अपने गांव मुंडभर में हुआ था । उन्हें वर्ष 1900 में मुनि की रेती ऋषिकेश में गुरूदेव स्वामी पूर्णानन्द जी सेे संन्यास की दीक्षा ली थी । अपने 129 वर्ष के जीवनकाल में उन्होनें 100 वर्ष जनसेवा में गुजारे । स्वामी जी ने करीब 300 शिक्षण संस्थाओं के साथ कृषि केन्द्रों, गऊशालाओं, वृद्ध आश्रमों, चिकित्सालयों आदि का निर्माण कराकर समाजसेवा में अपनी उत्कृष्ट छाप छोड़ी ।

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव जी के प्रमुख शिष्य एवं उत्तराधिकारी ओमानन्द ब्रचारी जी के अनुसार स्वामी कल्याणदेव जी को उनके समसाजिक कार्यों के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी जी ने 20 मार्च 1982 में पदमश्री से सम्मानित किया । इसके बाद 17 अगस्त 1994 को गुलजारी लाल नन्दा फाउंडेशन की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा जी ने उन्हें नैतिक पुरूस्कार से सम्मानित किया । 30 मार्च 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के0आर0 नरायणन जी द्वारा पदमभूषण से सम्मानित किया गया । इसके बाद चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के दीक्षांत समारोह में उन्हें 23 जून 2002 को तत्कालीन राज्यपाल श्री विष्णुकांत शास्त्री जी ने साहित्य वारिधि डी–लिट उपाधि प्रदान की थी।

स्वामी ओमानन्द के अनुसार ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव जी महाराज अपने जीवनकाल में कभी भी रिक्शा में नहीं बैठे । लखनऊ, दिल्ली रेलवे स्टेशनों पर जाकर भी वे हमेशा पैदल चला करते थे । उनका तर्क था कि रिक्शा में आदमी आदमी को खिंचता है । यह एक पाप है ।

पांच घरों से रोटी की भिक्षा लेकर एक रोटी गाय को दूसरी रोटी कूत्ते को तीसरी रोटी पक्षियों के लिये छत पर डालते थे । बची दो रोटियॉं को वह पानी में भिगोकर खाते थे ।

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव जी महाराज ने एक वर्ष पहले ही अपने शिष्य स्वामी ओमानंद महाराज को अपनी समाधि का स्थान बता दिया था । यहॉ तक की मृत्यु के तीन दिन पहले स्वामी जी ने अंतिम सांस लेने से दस मिनट पहले शुक्रताल स्थित मंदिर व वटवृक्ष की परिक्रमा की इच्छा जताई थी । उनकी इच्छानुसार उनके अनुयायियों ने ऐसा ही किया । इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण का चित्र देखकर उनके चेहरे पर हंसी आ गई ।

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव महाराज जी ने अपने जीवनकाल में हमेशा जरूरतमंदो की मदद करने का संदेश दिया । वह कहा करते थे कि अपनी जरूरत कम करो । और जरूरत मंदो की हरसंभव मदद करों । परोपकार को ही वह सबसे बड़ा धर्म मानते थे । ऐसा उन्होंने जीवन पर्यन्त किया भी । सदैव पानी में भिगोकर भिक्षा में ली गई रोटी खाने वाले स्वामी जी ने 129 वर्ष की आयु में 300 से अधिक शिक्षा केन्द्र स्थापित कर रिकार्ड स्थापित किया ।  मां सरस्वती के भक्त तथा मुजफरनगर के इस महान सपूत को शत शत नमन ।

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